थोड़ी घमंड आ गई मुझमें . . .
थोड़ी घमंड आ गई मुझमें . . .
थोड़ी घमंड आ गई मुझमें
जाने क्या निकलती है
अब जाकर समझ आया
आखिर हाथों से क्या फिसलती है
पथरिली जमीन पर मोती क्या मिली
हमने होश खो दिए
जब सामना हुआ सच से
हम वहीं रो दिए
कुछ तो अच्छाई थी मुझमें
जो अहंकार समझ आई
कुछ देर से ही सही
पर प्यार समझ आई
साहसा संभले समय रहते
जब वास्तविक्ता से परिचय हुआ
हम फिर उतरे जंग में पुनः
जब कुछ करने का निश्चित हुआ।