एक फिक्र
एक फिक्र
साथ खेले साथ बड़े हुए
वो दोस्त थे, जो अब अलग हुए
ग़लती है किसकी कौन ग़लत है
दोनों के दिल पत्थर हुए
दोनों एक-दूसरे की शक्ल से नफरत करते हुए
जीवन की जंग दोनों लड़ते हुए
दिल ही दिल में दोनों डरते हुए
एक-दूसरे की फिक्र करते हुए
आँखों को नदी करते हुए
लबों को मिर्ची करते हुए
एक-दूसरे की तोहीन करते हुए
अन्दर ही अन्दर खुद को तोड़ते हुए
ना चाहाते हुए भी एक-दूसरे को चाहते हुए
नाराज होते हुए भी नजर मिलाते हुए
वो दोस्त है जो खाली हाथ जाते हुए
एक-दूसरे को अनदेखा करते हुए
वो दोस्त है, जो थे होते हुए
मानव को जमीन दिखाते हुए
मन में मैल एक-दूसरे के लिए रखते हुए
वो दोस्त थे, बचपन की बातें भूलते हुए।।
