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Archana kochar Sugandha

Action

4  

Archana kochar Sugandha

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एक पाती सावन में पिया के नाम

एक पाती सावन में पिया के नाम

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आजा पिया अँखियाँ दर्शन की प्यासी

गायब हुए निंदिया दिन राती

जलता हैं दिया, बिन बाती

दुखता है रोम-रोम

रोग अपना,

किसी से कह भी नहीं पाती।

आजा पिया सावन में

विरह अगन सही नहीं जाती ।


कुंवारी है रातें, अधूरी है बातें

मिलन की आस

प्रेम आगोश में समाने की सौगात

अधूरी आस, अधूरी प्यास

झमाझम बरसा आकाश

बिरह अगन का करने नाश

आजा पिया सावन में

दो कदम चलते हैं साथ-साथ।


सावन लाया बहार

प्रकृति को दिया निखार

मदहोश हुई ठंडी-ठंडी बयार

गर्म सांसे, जलती अंगार

पिया तू बसता दूर दयार

आजा पिया सावन में

शब को तेरा हैं इंतजार ।


सावन में भीगता रहा तन

पवित्र पावन हुआ मन

मेरे अश्कों से निकली क्षीर की धार

को धोने लगी हैं

सावन की धीमी-धीमी बूँदों की फुहार

आजा पिया सावन में

फुहार की बूँदों से महकी हैं मेरी रुखसार।



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