एक अहसास
एक अहसास
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आता हूँ रोज पास तुम्हारे
जहाँ तुम उस रोज समाहित हुई थी
पंचतत्व में मिल चिता की अग्नि संग
इस आस में कि कहीं तुम आकर ....
लौट न जाओ,
इस एक अहसास की अनुभूति को
करके महसूस आता हूँ रोज पास तुम्हारे ,
तभी, हवा का तेज झोंका महसूस करता हूँ
पास अपने
जिसमें घुली हुई थी वही मादक सी सुगंध
लगा कि तुम पास मेरे हो आस पास यहीं
पर, यह भ्रम था क्योंकि
चिताओं के जलने से फैले धुएँ की महक थी
फिर भी,
आता हूँ रोज पास तुम्हारे मिलन की आस में