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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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द्वंद

द्वंद

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क्या ऐसा होता है,

कभी,

ज़हन में अक्सर एक द्वंद सा रहता है,

खोजता रहता हूं मैं,

कुछ ना कुछ ना जाने क्या?

उलझता चला जाता हूं ना जाने क्यों?

कभी शांत सा लगता हूं ऊपर से,

पर अंदर धड़कनें तेज सी होती हैं,

कभी दिल चहकता है बात बात पर,

कभी रहता है उखड़ा उखड़ा सा,

आखिर क्यों?

बस दूर..... कहीं जाने का मन करता है,

सब छोड़ छाड़ कर,

पर रुक जाता हूं,

अक्सर बेवजह,

ना जाने क्यों?



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