दुर्घटना
दुर्घटना
कितना सस्ता, है जीवन
और कितना जोखिम, भरा रोड।
चलने को मजबूर, इसी पर
कितनों के निशां, मिटाता ये मोड़।
लोग भीड़ भाड़, में भी
कर जायेंगे, घात और वार।
समय प्रतिकूल, रहा तो बीच
सड़क तमाशाई, ना कोई यार।
ना कोई, हमराह है
ना कोई, साथ निभायेगा।
जिंदगी की, धूप छाँव में सफर
अकेले ही तय, करना होगा।
घटना को, दुर्घटना बनाते
देर नहीं, करती जिंदगी।
दर्द और तन्हाई की, खामोश
तस्वीर बनी, यह जिंदगी।
तो चलना, संभल कर
आगे पीछे, देखकर।
कोई पीछे से, आकर सांसें
ना छीने, गाडी चढ़ाकर।
चलते हुए कदम, थके बहके
तो फिर मौका, नहीं मिलेगा।
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
जिंदगी ना दोबारा, फिर पायेगा।