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Chandni Purohit

Abstract

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Chandni Purohit

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दस्तक- कोविड

दस्तक- कोविड

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सीधा सा है मन, सीधी सी इसकी ख्वाहिशें 

कोई तोड़ देना चाहता है प्रतिपल 

छीन लेना चाहता है पुनः 

सारी हसरतें और चंद मुस्कुराहटें


तिनका तिनका जोड़ कर लाई हूँ 

सजाने मेरे मन का वो आशियाना 

जो कभी महकता था खुशियों से 

और सुनायी देती थी धड़कनों की सरसराहटें


पूर्ण विराम लगा हो मानो बदले वक़्त में 

बदलते हुए परिवेश और करीबियों का 

समावेश रूखे सूखे बेज़ान ज़ज्बात हैं 

लौट आयी है फिर से अविस्मरणीय आहटें 


कौन है वो जो होकर भी है नही कहीं 

कैसे भूल जानें दूँ वो खिली पंखुड़ी गुलाब सी 

घंटों बतियाने को आतुर थी हर वक़्त 

मौन हैं शब्द और मौजूद अनजान सारे रास्ते।


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