दर्द
दर्द
मिलते हैं खुशियों में ही सब
गम हों तो कोई बांटता नहीं
बीच अपनों में भी लगता है
कोई जानता नहीं।
कैसे हैं नाते कैसे यह दोस्त
दौर ए मुश्किल में मिलते नहीं
यह सब लोग।
चैन दिन को नहीं, न रात को
सुख पाते हैं, सभी सगे सवन्धी मुश्किल में परखे
जाते हैं।
यूं जो बने फिरते हैं हमदर्द व हमनवी भी,
पड़े मुश्किल तो कहते हैं गये थे कहीं।
मंजिल राहत तक पहुंचना है
किस तरह, राहगिर तो हुं
पर कारवां कोई नहीं।
हाले -दिल किसे सुनाये कोई
गम अनगिनत हैं हमदर्द कोई
नहीं।
गम के साये में ही गुजार
देता है निर्धन जिंदगी, दर्द
ऐसा मिलता है जिसकी दवा
कोई नहीं।
जब कभी भी मिला मुसाफिर
वो रास्ते बदल गया, दो कदम
थी मंजिल वो फासले बदल
गया।
आसमां को छुने की हिम्मत थी,
बिखर कर हौंसले बदल
डाले, मुसाफिर ही ऐसा मिला
फासले बदल डाले।
बनके फूल महक के
लाले पड़ने लगे, कांटों
से कर के दोस्ती अब फैसले
बदलने पड़े।
सब कुछ देख कर जब याद खुदा की आई,
दुख दर्द भी
सुन लिए सुदर्शन और मंजिल भी खुद ही पाई।