Neha Yadav
Tragedy
खामोशियों को समेटे
लब कंपकंपाता रह गया
छुपाते रहे हर दर्द, तन्हाई
आंसुओं में सिमट के रह गयी।
यादों की बारि...
देशहित में
घर छोड़ जाने क...
मकाम हैं हम
मैं तुम का भे...
सच्चाई
वो पहली मुलाक...
विश्वास
संवेदनशील नार...
उम्मीदों की, ढलती हुई शाम नहीं क्यों जग में उनका नाम नहीं ? उम्मीदों की, ढलती हुई शाम नहीं क्यों जग में उनका नाम नहीं ?
कोई भेजेगा भला क्यों अपनी बिटिया को ऐसे माहौल में कहाँ से मैं कन्या पूजन के लिए कोई भेजेगा भला क्यों अपनी बिटिया को ऐसे माहौल में कहाँ से मैं कन्या पूजन...
तुम्हारे इस गुनाह की सजा तुम्हे मुकद्दर ही देगा, जब खुद की औलाद को तू बेबस और लाचार देखेगा, ह... तुम्हारे इस गुनाह की सजा तुम्हे मुकद्दर ही देगा, जब खुद की औलाद को तू बेबस औ...
यूं ही कितनों के घर बनते बिगड़ते रहे। यूं ही कितनों के घर बनते बिगड़ते रहे।
ऐसा नहीं है कि वो प्यार नहीं करता उसकी कलियों सी मुस्कान देख वो भँवरा सा बन जाता है पर ज़िन... ऐसा नहीं है कि वो प्यार नहीं करता उसकी कलियों सी मुस्कान देख वो भँवरा सा ...
बदल सकता हूँ न समाज को शायद यही अब हमारी नियति बन चुकी है। बदल सकता हूँ न समाज को शायद यही अब हमारी नियति बन चुकी है।
क्या लिखूं मैं.. देश को जातियों और धर्मों में बांटने वाले उस हिन्दू और मुसलमान पर, क्या लिखूं मैं.. देश को जातियों और धर्मों में बांटने वाले उस हिन्दू और मु...
अपनी इंसानियत का चोला उतार कर हैवानियत का जामा पहन अपनी इंसानियत का चोला उतार कर हैवानियत का जामा पहन
लटकती डोर पंखे से गिरी थी फर्श पर टेबल अभागी बच सकी न वो किया था हमसफ़र ने छल लटकती डोर पंखे से गिरी थी फर्श पर टेबल अभागी बच सकी न वो किया था हमसफ़र ने छल
हम ही तो हैं कि जिसने निर्भया, आसिफ़ा और न जाने किस किस का बलात्कार किया है हम ही तो हैं कि जिसने निर्भया, आसिफ़ा और न जाने किस किस का बलात्कार किय...
माँ की ममता को चार धाम का सुख, घर में ही मानो मिल जाता, माँ की ममता को चार धाम का सुख, घर में ही मानो मिल जाता,
मैं रोती थी घुटन से हर रोज़ पर किसी को परवाह ना थी मैं रोती थी घुटन से हर रोज़ पर किसी को परवाह ना थी
हाल कैसा हो गया अगर जुगाड़ के बदले, परफेक्शन होता तो देश अब तक विकसित राष्ट्र हाल कैसा हो गया अगर जुगाड़ के बदले, परफेक्शन होता तो देश अब तक विकसित ...
बसंत बीत गइ सावन बीता बीता प्रीत का हर मौसम तेरे बीन अब बहार भी पतझड़ कहाँ छुपाऊ। बसंत बीत गइ सावन बीता बीता प्रीत का हर मौसम तेरे बीन अब बहार भी पतझड़ क...
प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर। प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर।
चारों ओर कंकरीट की इमारतें न दिखती कही हरियाली है चारों ओर कंकरीट की इमारतें न दिखती कही हरियाली है
फँसा हुआ है गले गले तक, कर्जे में वो रोता है। कोई साहूकार हो दुश्मन, बस किसान का होता फँसा हुआ है गले गले तक, कर्जे में वो रोता है। कोई साहूकार हो दुश्मन, बस किसान...
दिल ने जिनके सपने संजोये, आज वही आँसू बहायें, अपने बच्चों से मिलने के ख़ातिर, आज वही तरस जायें।। दिल ने जिनके सपने संजोये, आज वही आँसू बहायें, अपने बच्चों से मिलने के ख़ातिर,...
उस वक्त ही आप हमसे बहुत दूर चले गए। उस वक्त ही आप हमसे बहुत दूर चले गए।
गुड़ियों से खेलने की उम्र में दिन रात हालात से खेलती है गुड़ियों से खेलने की उम्र में दिन रात हालात से खेलती है