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Rajeev Tripathi

Romance

4.5  

Rajeev Tripathi

Romance

दर्द-ए इश्क़

दर्द-ए इश्क़

1 min
284


दर्द बन जाओ की अब तो

आदत सी हो गई है तुम्हारी

सुकून मिलता है अगर

तो रातों में नींद नहीं आती 

तुम्हारा ज़िक्र और

बेवफ़ाई का ज़िक्र ना हो

बात ख़्वाबों में हमको

बड़ा सताती 

तुम्हारे इल्म के आगे 

जहाँ मैं कुछ भी नहीं

इल्म के गुमान में

तुम्हारी हस्ती भी इतराती 

चाँद तो यूँ ही बदली

में कहीं छुप जाता

तुम्हारी ज़ुल्फ क्यों चेहरे पर

नज़र आती 

तुम्हारा ज़िक्र हो और

तुम ही पास ना हो

हमें तो मुफ़्त ही में

क़ज़ा मिल जाती 

उनसे कहना कि

मुकम्मल कभी हो कर देखें

हमारे ज़िक्र भर से तो

बात बिगड़ जाती 

जब से हम आपके हुए हैं

वफ़ा भी हमको नज़र

नहीं आती 

घर में अगर कोई हो शख़्स तन्हा

तो चाँदनी भी घर जलाती

तो चाँदनी भी घर जलाती 


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