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निखिल कुमार अंजान

Tragedy

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निखिल कुमार अंजान

Tragedy

दर्द भरी चीखें

दर्द भरी चीखें

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बंजर और बेजान लगता है

मुझे आज भी वो अस्पताल

जब भी गुजरता हूँ उस रोड़ से।


सुनाई देती है तुम्हारे कराहने की आवाजें

दर्द का सैलाब उठता है सीने में

भूलाए नहीं भूलता वो मंजर

लगभग दो वर्ष बिताए थे वहाँ

कितने जीवन का अंत देखा था।


सिहर उठता था मैं हर बार और

कसकर भींच लेता था तुम्हारे हाथ को

वो अंतिम रात अक्सर आँखों के सामने आती है

कानो मे गूंजती है तुम्हारी आवाज।


निक्की बेटा, बहुत दर्द हो रहा है बचा ले मुझे

कितना असहाय था उस समय मैं

फिर आचानक तुम्हारी हृदय गति का रुक जाना

और घेर के खड़ी थी डॉक्टरों की पूरी टीम।


मेरी सांसें अटक चुकी थी अश्रु बह रहे थे

डॉक्टरों का तुम्हारी छाती को जोर से दबाना

उनकी मेहनत रंग लाई हृदय गति मंद मंद चल पड़ी

फिर अगले दस दिन आई सी यू में बीते।


वह दस दिन नहीं दस वर्ष के बराबर थे

आखिरी बार जब मैं तुुमसे मिलने आई सी यू में आया

तुमने एक बार मुस्कराकर मुँह फेर लिया था

फिर उस शाम को खबर आई कि तुम छोड़ गए।


उठ गया तुम्हारा साया मेरे उपर से

उस दिन आंसू नहीं थे आँखों मे गुस्सा था

अपने क्रोध को मैंने आई सी यू की दीवार पर निकाला था

तुम्हारे जाने के बाद मैं धीरे धीरे शांत हो गया।


लेकिन आज भी खुद को उसी वार्ड मे खड़ा पाता हूँ

जमीन पर बिखरी पड़ी तुम्हारी रिपोर्ट

उजड़ा हुआ वो बिस्तर 

एक तरफ पड़े तुम्हारे कपड़े

और दर्द भरी चीखें,


दिखती हैं सुनाई देती हैं मुझे

मैं कल भी असहाय था आज भी असहाय हूँ

मैं इसलिए अंजान न होकर भी अंजान बनता हूँ

और अक्सर ऐसे मंजर से बचता हूँ...।


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