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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

दोस्ती का सुनहरा शीशा

दोस्ती का सुनहरा शीशा

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दोस्ती का सुनहरा शीशा टूट गया है

बरसों पुराना सखा पीछे छूट गया है


ज़माने की चकाचौंध ने अंधा किया है

आज भरोसे का कोहिनूर टूट गया है


हम उसको रूह समझकर जीते रहे,

वो मित्र जिस्म से रूह लूट गया है


दोस्ती का सुनहरा शीशा टूट गया है

बरसों पुराना सखा पीछे छूट गया है


दिखावे में वो खो गया इस क़दर की,

अपने ही परछाई को वो भूल गया है


रह गई अब तो खंडहर की तस्वीरें,

मित्रता के बंगले से बहुत दूर गया है


दोस्ती का सुनहरा शीशा टूट गया है

बरसों पुराना सखा पीछे छूट गया है


बरसों से लगाया हुआ मित्र-दरख़्त,

एक पल में ही आज सूख गया है


जबतक उसके ये भ्रम का पर्दा हटेगा,

तबतक साखी का किनारा दूर गया है


दोस्ती का सुनहरा शीशा टूट गया है

बरसो पुराना सखा पीछे छूट गया है


फिर से सुनहरा शीशा जिंदा न होगा

दिखावे के रवि से बेकद्र हो टूट गया है


मैं नभ से ज़्यादा ऊंचाई से कूद गया हूं

मेरे मित्र तू जो मुझसे बहुत रूठ गया है



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