दो अँगूठी
दो अँगूठी
दो अँगूठी दोनों हाथों में
एक ही संकल्प लिये है
मिल जुल कर एक घर बनाएंगे
सपनों का संसार बसाएंगे।
मेरी अंगूठी तुझे पहनाऊं
और तुम अपनी मुझे पहना
तू मेरा सम्मान बन जाना
और मैं तेरा गहना।
प्रकृति और पुरुष के मेल से
प्रभु एक फूल खिलाएंगे
अपना सारा प्रेम हम दोनों
उस फूल पर उढ़ेलेंगे।
हम दोनों की बांह पकड़ वो
मजबूती से बढ़ता जाएगा
खुद सशक्त होगा दिन दिन
हमें और बुलंद बनाएगा।
मैं बाहर श्रम खूब करूंगा
तुम मुस्कानों से घर भरना
तेरे गुणों को पहचान मिले
प्रयास मुझे यह है करना।
संस्कारों, शिक्षा, ज्ञान से हम
उस फूल को फिर सींचेंगे
एक प्रण और लेते हैं अपनी
सांस आखिरी, एक साथ खीचेंगे।

