दिव्य-दीप...
दिव्य-दीप...
जलता रहे दिव्य-दीप आस की...
न ढले शाम विश्वास की !
ये बात अपने दिल में
गाँठ बाँध लो कि तुम्हें
अपना जीवन प्रकाशमान करना है...!
हर हाल में स्वयं को सशक्त बनाए रखना है...
इस समाज के लिए अपना पूर्ण योगदान देना है !
ये देश अपना है...यहाँ के लोग अपने हैं।
फिर क्यों लड़ना-झगड़ना...?
चलो, हम सब मिलजुल कर रहें...!
भारत माँ की उन्नति हेतु
अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें...
ये दिव्य-दीप है एकता की प्रेरणा...!
ये दिव्य-दीप है राष्ट्रीय अखण्डता की...!
हमारा देश महान है ---
इस देश की हर बात निराली है !
हम सबको अपने भारत को
जगद्गुरु का सर्वोच्च आसन
दिलाने का निरंतर प्रयास
करते रहना चाहिए।
चलो, हम आत्मनिर्भर भारत की जागृति हेतु
ये दिव्य-दीप जलाएँ...!!!
