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Surendra kumar singh

Romance

3  

Surendra kumar singh

Romance

दिन तुम्हारा हुआ

दिन तुम्हारा हुआ

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अजनबी सा आया हुआ

दिन तुम्हारा हुआ।

नजर में है हमारी,

तुम्हारा परिणय दिन से

हंसी ठिठोली

जीवन के मनसूबे

मन्जिल का तुमतक आना

रास्तों का पावों में सिमट जाना।

दिन भर तुममे रमता हुआ दिन

रात को तुम्हारे आगोश में खामोश

नीद सा पड़ा हुआ है

और सपने वही हैं दिन के।

सुबह से परिणय

दिन भर मस्ती,

आनन्द

इजहार फूलों का

कामनायें हवाओं की

इरादे बादलों के।

नीद में भी कितनी सक्रियता है।


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