दिल की अनकही बातें
दिल की अनकही बातें
दिल की अनकही बातें
दिल की अनकही बात जुबा पर उतर आती है
दर्द भरी कोई कविता कागज़ पर उभर जाती है
तेरे बिन ज़िन्दगी यहाँ पतझड़-सी बिखर जाती है,
किसीकी रात सूनी किसीकी सुबह निखर जाती है।
सामने से हसरतें भी अब चुपके से गुजर जाती हैं,
तुझे खो न दूँ सोचकर धड़कनें भी सिहर जाती हैं।
याद नहीं है धूप आजकल कौन-सी पहर आती,
जाने क्यूँ भूल रहा तेरे गॉंव कौन-सी डगर जाती है।
रात की तन्हाई में चांदनी जब ज़मीं पे उतर आती है,
तुझसे मिलने की प्यास नम नयनों में उभर जाती है।
अहसास होता है रात तू चौखट पर ठहर जाती है,
आवाज देती नहीं थमाकर ग़म का ज़हर जाती है।
मेघों के हवाले से जब मल्लिका की ख़बर आती है,
आषाढ़ के बादलों में कालिदास की नज़र जाती है।