ग़ब्बर - परी की प्रेम कहानी
ग़ब्बर - परी की प्रेम कहानी
नादान सा दिल रुकता नहीं ,
किसी भी मोड़ पर .....
शरारतों को दे अंजाम,
हँसता फिर मुँह मोड़ कर।
ऐसी ही एक शरारत ,
कर दी उसने अंजाने में ,
अपने सपनो में एक परी ला ,
नाम दिया उसको परी कुछ सालों में।
वो परी एक मर्द थी ,
जो अक्सर गुस्से में रहती थी ,
नाम सुन कर ऐसा अपना ,
गुस्से में जलती रहती थी।
फिर सोचकर उसने भी ,
नाम मुझे एक ऐसा दिया ,
जिसे सुन कर सारे समूह ने ,
एक प्रशंसा पत्र मुझे भेंट किया।
ग़ब्बर नाम सुन कर मुझे ,
सच पूछो तो अच्छा लगा ,
इन्ही छोटे - छोटे किस्सों से ,
एक प्रेम ग्रंथ आगे बढ़ा।
बन गई ग़ब्बर - परी की ,
चोरी - चोरी एक प्रेम कहानी ,
जिसमे दोनो थे बेचैन ,
पर कह ना पाते थे जुबानी।
एक तड़प एक बेचैनी ,
झलकती थी बिलकुल साफ - साफ ,
जब इंतजार परी करती रहती थी ,
ग़ब्बर की बातों का दिन और रात।
चोरी चुपके से आभासी मंच पर ,
उसकी सामग्री पर अंगूठा दिखाना ,
और ग़ब्बर का भी उसी मंच पर ,
जानबूझ कर नई सामग्री छोड़ जाना।
ये एक नई उम्र की तड़प थी ,
जिसने किये दो दिल बेचैन ,
बूढ़े होते हुए दो दिलों के ,
सज गये देखो सपनो से नैन।
ग़ब्बर - परी की ये कहानी ,
धीरे - धीरे बनी सबकी जुबानी ,
मगर इस कहानी के किरदार ,
ढह जायेंगे बीच भँवर में होगा जब पानी।
इसलिये ऐसी प्रेम कहानी का ,
कोई अस्तित्व नहीं होता मेरे यारों ,
क्योंकि ये व्याभिचार कहलायेगा सदा ,
जिसमे चार दिलों की आहुति होगी प्यारों।|