राधा की व्यथा
राधा की व्यथा
मुख पे छाई उदासी
आंखों में ले खारा पानी
कृष्ण विरह में हो व्याकुल
कह रही है राधा रानी
मन को मेरे चुरा ले गया
घर - घर से माखन चुराने वाला
मुझे अकेला छोड़ कहा चला गया
मिठी बंसी बजाने वाला
बरगद के वृक्ष बता
कहां हैं मेरे कृष्णा
पीपल के पेड़ बता
शांत कौन करेगा मेरी प्रेम तृष्णा
तुलसी, तू तो माधव को बड़ी प्यारी है
श्यामसुंदर के चरणों की तू वासी है
मुझको मेरे स्वामी का पता बतादे
उनके बिना व्याकुल यह दासी है
जाकर माँ यमुना के पास
राधा कृष्ण का पता पूछती है
वृक्षो से करती बाते
और अपने श्याम को ढूंढती है
हवाओं से राधा कुछ यूं बोली
तुम तो हर जगह करती हो विचरण
कन्हैया तक मेरा सन्देशा पहुंचा दो
उनके बिना व्यथित है मेरा मन
कन्हैया को कोई भेजो यह सन्देशा
तेरे वियोग में तेरी प्रेयसी हो रही है पीड़ित
श्याम तेरे आने की आस है जिसके कारण
न तो मर पाऊ और ना ही रह पाऊ जीवित
कृष्ण के जाने के कारण
किसी कार्य मे मेरा मन लगता नही
कन्हैया तू जब से चला गया
मेरा मुख प्रसन्नता से खिलता नही
कृष्ण, तू कहां छुपा है
अब ये छुपन - छुपाई का खेल और सहा नही जाता
तेरे विरह की व्यथा के कारण
मुझसे अब जीवित रहा नही जाता
क्या धरती पर है ऐसा कोई
जो मुझे कृष्ण का पता बता दे
क्या है कोई परोपकारी
जो राधा को कृष्ण से मिलवा दे।

