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AVINASH KUMAR

Romance

4  

AVINASH KUMAR

Romance

प्रेम तो कर लिया तुमने

प्रेम तो कर लिया तुमने

2 mins
13


प्रेम तो कर लिया तुमने प्रेम से,

पर क्या संभाल कर रख पाए उसके पवित्र हृदय को,

क्या सराह पाए उसकी नादान हरकतों को,

क्या समझ पाए उसके अबोध स्नेह की भाषा को....?


प्रेम ने अपनी कविताओं में तुम्हें उपमेय कभी नहीं बनाया,

वह तो पदवी देता है तुम्हें उपमान की,

सदा नई सृष्टि दिखाता है तुम्हें पवित्र प्रेम की,

उसने तो अपने जीवन में परिवार के ऊपर तुम्हें प्रथम स्थान तक दे दिया और...


पर क्या तुम दे पाए सही रूप में सम्मान उसकी आत्मा को,

क्या पहुँच पाए चरम तक उसके प्रयत्नों के,

क्या दे पाए कोई उपहार वैसा ही लौटाने उसके व्यवहार को?


प्रेम जो तुम्हारे प्रेम में उन्मादी है 

जिसने सिमित कर लिया ख़ुद को तुम तक,

मूँद लिया संसार से आँखें,

वही सुना जो तुमने उसे सुनाया,

वही तक देखा जहाँ तक तुमने उसे दिखाया,

समा के नेत्रों में तुम्हें पल-पल सहलाया, 

सारे जहां को तुम्हें अपना ब्रह्मांड बताया...


पर क्या तुम बोल पाए पूर्ण सत्य उससे हर बार,

पर क्या तुम ज़रूरी समझ पाए प्रेम की पवित्र सुगंध पहुँचना उस तक,

क्या तुम उसको वह पद दे पाए डंके की चोट पर।।


जिसका उदाहरण दिया जाता हो समझदारी के रूप में,

जिसको ख़्याती प्राप्त हो अपने हर एक निर्णय पर,

वह तुम्हारे समक्ष नासमझ बन कर रहता है,

जानकर भी सुनने तुम्हारी डांट गलतियाँ दोहराता है,

तुम्हारी आवाज़ को अपना मन पसंद संगीत बतलाता है,

तुम्हारी सुगंध में वह मदहोश सा झूमते रहता है ...


पर क्या तुम आकलन कर पाए,

उसके बचपने के पीछे छुपी प्रेम की आस का,

तुम्हारे उसके चेहरे की भाव भंगिमा पर ध्यान न देने की निराशा का,

क्या कर पाए सार्थक उसकी तुमसे जुड़ी इच्छाओं को।।


आज अगर परिस्थितियाँ को बदलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है,

समाज को अपने फैसले पर बोलने का हक भी नहीं दे रहा है,

हर समय उसके लिए कुछ मायने नहीं रहता है,

आस करता है केवल और केवल तुम्हारे साथ की...

पर क्या तुम खड़े रह पाते हो सारे संसार से हटकर उसके साथ.....?

शायद नहीं, 

और जब वह ख़ुद के लिए लड़ने लगा,

अपने हक का बताने लगा, तो 

कह दिया न तुमने बड़ी आसानी से की तुम बदल चुके हो,

छोड़ दिया तुमने भी उसका हाथ बीच भँवर में,

अरे, वो मूर्ख इतना प्यार करता है तुम्हें कि

फिर भी तुमको कभी कोस तक नहीं पाएगा,

क्षमा करके तुमको कहीं दूर चला जाएगा।। 


पर क्या क्षमा ले पाओगे तुम उस ईश्वर से,

जिसकी सर्वप्रिय रचना है प्रेम... 

वह स्वयं गिनती लगाता है उसके एक-एक आँसुओं की,

क्या बच पाओगे तुम उसके न्याय से.....?

क्या बच पाओगे तुम उसके न्याय से.......


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