क्या लिखूं तुझ पे
क्या लिखूं तुझ पे
क्या लिखूं तुझ पे ,
किन शब्दों की ताज पहनाऊं तुझे .......?
ना तू मेरी प्रेमी है , ना सहेली ,
ना रिस्तेदारी है , ना भगारी ...,
ना दोस्ती है ना दुश्मनी ....,
ना उम्र में समानता है ,
ना सोच में ......,
फिर भी ना जाने क्यों
तू अपना सा लगता है .....।
कुछ भी रिश्ता ना हो कर भी
एक ना टूटने वाली रिश्ते की
खुशबू महसूस होती है ,
तुझे देख कर ......।
पता नहीं ये तेरे मुस्कान के कमाल है ,
या फिर तेरे शब्दों का .....,
वरना मुझ जैसे लोगों को
अपना लगना इतनी आसन भी नहीं है .......।
वैसे तो किसी पे यकीन में करती नहीं हूं ...,
किसी को अपना बनाती नहीं हूं ,
पर फिर भी .....,
तू कहीं अपना सा लगता है .....।
अजब सी मुस्कान है तेरी ,
वो अपने अंदर सारी गम को
छुपा लेती है ,
तेरे होंठों पर ठहर कर तुझे और भी
खूबसूरत बनाती है ......।
अजब सी आंखें है तेरी ,
जो न जाने खुद के लिए सपना बुनता है की नहीं ,
पर हां दूसरों के लिए
हजार सपने बुन के तुझे और भी
बेमिसाल बनाता है ......।
अजब सी दिल है तेरे
जो खुद के लिए धड़कता है की नहीं ....., मालूम नहीं ,
पर औरों की दिल की खुशी को
खूब पहचानती है .....।
पता नही तुझ पे और क्या लिखूं ....?
वैसे तो हजार पन्ने भी कम पड़ जाएंगे ....,
लेकिन अभी लिखूं तो क्या लिखूं.......?
बस.......
ये ही पता है ,
तू अपना सा लगता है ,
कुछ रिश्ते ना हो कर भी ,
हजार रिश्ते तेरे सामने सपना सा लगता है .......।
हां ......
तू अपना सा लगता है ........।