माफ़ करना
माफ़ करना
माफ़ करना ,
आज मैं मजबूर हूं ,
खुद की हाथों से
और वक्त की हाथों से भी ....,
ये....वक्त....
ये वक्त भी कितनी अजीब है ,
जब मिलाना था ,
तब दूर कर दिया ,
और जब दूर रहना है ,
तब मिला रही है ....।
ये वक्त भी
कितनी अजीब है ......।
तब कुछ बनना था ,
कुछ सपने पूरी करनी थी ,
कुछ ख्वाहिशों को पंख लगाना था ,
सायद,
सायद इसीलिए ....
तेरे प्यार मुझे दिखा नही ,
या , दिख कर भी
मैने दिखा नहीं ......।
तू इसारा करता गया ,
मैं समझ कर भी
ना समझ बनती रही ,
तू आखें मिलाने की कोशिश
करता रहा ,
और मैं
आंखे चुराने लगी .....,
तू मिलने की बहाने ढूंढता रहा ,
और मैं तुझसे दूर रहने की बहाने ......।
फिर टूट गई तेरे सब्र की बांध ,
तू भी उम्मीद छोड़ दी ,
और.....
मैने भी कभी कोशिश नही की ,तुझे समझ ने की ,
कभी इजहार ही नहीं किया ,
ना दिल से अभी इनकार किया .....।
वक्त बदल गई ,
तू किसी और की ,
और
मैं भी किसी और का .....।
फिर आज क्यों....?
आज क्यों .....
ये वक्त हमे दुबारा मिला रहा है ,
तू न कहता था ,
अगर वक्त ने मिलाया है ,
तो ये कायनात भी कुछ सोचा ही होगा ,
फिर भी ......
आज क्यों....?
जब दूर रहना है ,
तब मिला क्यों रही है ....?
ये वक्त भी कितनी अजीब है .....
जब मिलाना था ,
तब दूर कर दिया ,
और जब दूर रहना है ,
तब मिला रही है ....।
तब सपनो पंख देना था ,
आज अपनो को पंख देना है ...,
तब खुद की उड़ान भरनी थी ,
आज अपनो की उड़ान को बल देना है ,
तब ख्वाहिशों को जिम्मेदारी थी ,
आज अपनो की जिम्मेदारी है ....,
माफ़ करना ,
मैं कल भी मजबूर थी ,
आज भी मजबूर हूं .....।
सायद कल होता , तो तेरे हात मैं थाम लेता,
पर आज नहीं ,
आज मेरी हात किसी की सहारा बन गई है ,
कोई मेरे खातिर जी रहा है ,
कोई है जो मुझ बिन बेजान सी है ,
कोई है जिसकी मैं अब जरूरत बन गई हूं ,
कोई है जिसकी
सुबह की पहली तस्वीर हूं में ,
रात की सुकून मैं हूं .....।
सायद
मैं मजबूर हूं ,
सायद
मैं ... भी इन जिम्मेदारियों को
प्यार करने लगी हूं ....।
माफ़ करना .....
आज मैं मजबूर हूं ......,
माफ़ करना ....
मैं कल भी मजबूर थी ,
आज भी मजबूर हूं .........।
