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ritesh deo

Romance

4  

ritesh deo

Romance

प्रेम और भविष्य

प्रेम और भविष्य

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443


"हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे..

लेकिन कभी

लाल साड़ी में तुम्हे देखकर थम जाए मेरी नज़र... तो

समझ जाना तुम...

जब तुम रसोई में अकेली हो

और उसी वक़्त मैं वहां पानी पीने आऊँ... तो

मेरी प्यास को समझ जाना तुम...!

ऑफिस से लौटते हुए कुछ ग़ज़रे ले आऊँ... और

सबकी नज़रों से बचाकर तुम्हारे सामने रख दूँ... तो

समझ जाना तुम...!

जब दोस्तो के साथ

घूमने का प्लान कैंसिल करके

तुम्हारे साथ गोलगप्पे खाने चला जाऊं... तो

समझ जाना तुम...!

तुमसे कोई गलती हो जाये और मैं गुस्साने या खीजने की बजाय तुम्हारी पीठ को सहला दूँ... तो

उस स्पर्श को समझ जाना तुम...!

हां मैं जानता हूं कि मैं भूल जाऊंगा,

हमारी सालगिरह, तुम्हारा जन्मदिन, या घर से बाहर जाते वक्त

तुम्हे आई लव यू बोलना

लेकिन कभी वक़्त बेवक़्त त

ुम्हे सीने से लगा लूं... तो

समझ जाना तुम...!

तुम्हारे बिना घर मे एक बेचैनी सी होने लगे... और मैं

कॉल करके कहूं कि... कहाँ हो इतनी देर से,

अभी के अभी घर आओ... तो

मेरी नाराज़गी में छुपी मेरी तड़प को समझ जाना तुम...!

जो कभी झल्लाकर कहूं कि.. "तुम्हारी रखी हुई चीज़,

मुझे कभी नही मिल सकती"... तो

तुम पर मेरी निर्भरता को समझ जाना तुम...!

हो सकता है, मैं.... अपना हर दुख, हर परेशानी,

तुमसे साझा ना कर सकूं... लेकिन कभी,

किसी बच्चे की तरह तुम्हारी आगोश में सिमट जाऊँ... तो

समझ जाना तुम...!

हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुम्हे...

तो क्या तुम समझ जाओगी न प्रेम... क्योंकि....


भविष्य मे एक दिन...

अपनी सारी उदासी बहा देना चाहता हूँ...

एक सिर्फ तुम्हारे कंधे पर रख कर सर..!!



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