दीवार
दीवार
उस पुराने हो चुकी दीवार से
जब मैं फ़िर से आज टकरायी
कानों में मेरे
कुछ आवाज़ सी आने लगी
कुछ आवाज़ें मेरी थी
कुछ मेरे बचपन की
खुद के हँसने व
रोने की उन आवाज़ों से
उन्ही दीवारों संग
अतीत में कहीं खो गयी
हँसती खिलखिलाती
वो छोटी सी लड़की
उन दीवारों के सहारे
चलना सीखती
और जब कभी डाँट पड़ती
तब उन्ही दीवारों में छुपती
वो लड़की !
उसकी दरख्तों में
सबसे छिपा कर
अपनी यादों को संजोती
वह लड़की !
सब कहते हैं कि
बेजान सी होती हैं
ये दीवारें
पर कभी फुर्सत से
टकरा कर देखो
हम सबकी यादें
हमारा बचपन
हम सबकी जान बसती
है इन्ही दीवारों में...!