दीवाली बचपन वाली
दीवाली बचपन वाली
दीवाली होती थी बचपन में,
जब माँ दिए जलाती थी आंगन में,
पापा मेरे लिए पटाखे लाते,
मेरे नन्हे नन्हे हाथों को वे फुलझड़ी
जलाना सिखाते,
याद आते हैं माँ के हाथों के बनाए पकवान,
याद आती है वो बचपन की दीवाली,
जिसमें खुशियां थी आनंद था अपनो का साथ,
जब मैं बाजार जाती थी बचपन में
थामकर माँ का हाथ,
हां एक ऐसी भी दीवाली देखी थी
मैंने जब खुशियां थी अपार,
जब दीवाली सच में लगता था एक अच्छा त्यौहार,
गर कोई पूछे क्या चाहती हो इस बार,
बस यही मन है लौट जाऊं बचपन की
उस दीवाली में एक बार।
