दीदार-ए-हसरत
दीदार-ए-हसरत


दीदार-ए-हसरत में नज़रें जमाए बैठे हैं
निगाह-ए-जमाल की तलब लगाए बैठे हैं
ख़ार चुभ न जाए कहीं पाक कदमों में
कि राह में दफ़्तर-ए-गुल बिछाए बैठे हैं।
दीदार-ए-हसरत में नज़रें जमाए बैठे हैं
निगाह-ए-जमाल की तलब लगाए बैठे हैं
ख़ार चुभ न जाए कहीं पाक कदमों में
कि राह में दफ़्तर-ए-गुल बिछाए बैठे हैं।