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ashok kumar bhatnagar

Tragedy Action Classics

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ashok kumar bhatnagar

Tragedy Action Classics

"धुँधली बारिश में उलझे सवाल"

"धुँधली बारिश में उलझे सवाल"

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बारिश की पहली बूँद गिरी,
मगर मन का सूखा आँगन नहीं भीगा।
हवा में नमी थी,
पर दिल के अंदर कहीं रेगिस्तान पसरा रहा।

तुम आए — जैसे बादल चुपचाप उतरते हैं,
और मैं चौंक गया —
क्योंकि मिलना भी यहाँ एक अजनबी-सा था।

तेरी आँखों में भी कुछ टूटा-टूटा था,
शायद वही जो मेरी रूह में बिखरा पड़ा था।
शब्द मिले, पर अर्थ नहीं,
हाथ छुए, पर पकड़ नहीं।

फिर वही जाना —
बिना अलविदा के,
जैसे बारिश का बादल अचानक बदल जाए हवा में।

मेरी हथेली में
बस कुछ गीली बूँदें बचीं
और एक सवाल —
क्या मिलना सिर्फ़ बिछड़ने का अभ्यास है?

मैं खड़ा था,
बारिश भी, दर्द भी, सब मेरे साथ थे,
पर उत्तर नहीं था —
शायद यही जीवन का रहस्य है,
कि हम भीगते हैं, रोते हैं,
और फिर भी सूखे रह जाते हैं।


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