"धुँधली बारिश में उलझे सवाल"
"धुँधली बारिश में उलझे सवाल"
बारिश की पहली बूँद गिरी,
मगर मन का सूखा आँगन नहीं भीगा।
हवा में नमी थी,
पर दिल के अंदर कहीं रेगिस्तान पसरा रहा।
तुम आए — जैसे बादल चुपचाप उतरते हैं,
और मैं चौंक गया —
क्योंकि मिलना भी यहाँ एक अजनबी-सा था।
तेरी आँखों में भी कुछ टूटा-टूटा था,
शायद वही जो मेरी रूह में बिखरा पड़ा था।
शब्द मिले, पर अर्थ नहीं,
हाथ छुए, पर पकड़ नहीं।
फिर वही जाना —
बिना अलविदा के,
जैसे बारिश का बादल अचानक बदल जाए हवा में।
मेरी हथेली में
बस कुछ गीली बूँदें बचीं
और एक सवाल —
क्या मिलना सिर्फ़ बिछड़ने का अभ्यास है?
मैं खड़ा था,
बारिश भी, दर्द भी, सब मेरे साथ थे,
पर उत्तर नहीं था —
शायद यही जीवन का रहस्य है,
कि हम भीगते हैं, रोते हैं,
और फिर भी सूखे रह जाते हैं।
