धुंध
धुंध
है ये धुंध नगरी या घुटन भरी दुनिया।
स्वच्छ पावन धरती को जो दूषित किया।
प्रकृति का संतुलन जो बिगड़ा,
दुखी सब संसार हुआ।
फिर भी न समझे मूरख,
जन-जन काला नभ करे।
खुद ही बिगाड़े खेल प्रभु के,
समझे स्वयं को ही जग रखैया।
है ये धुंध नगरी या घुटन भरी दुनिया।
स्वच्छ पावन धरती को जो दूषित किया।
प्रदूषण की बढ़ती मारी,
सांस लेना मुश्किल हुआ।
जंगल कटे जैसे धरती,
अपने आँचल से दूर हुआ।
छाया की छाया अति दूर,
धूप ने तांडव खूब किया।
है ये धुंध नगरी या घुटन भरी दुनिया।
स्वच्छ पावन धरती को जो दूषित किया