ध्रुम्पान निषेध
ध्रुम्पान निषेध
ध्रुमपान एक गुनाह है,
क्यों बने बैठो हो गुनहगार तुम,
यही से नस्ले बिगड़ रही है,
क्यों बदनाम कर रहे संस्कार तुम,
हर भाव हर रिश्ते नाते से दूर हो,
क्या सच मुच नशे में इतने चूर हो,
पूरी तरह नशे में डूब कर ,
कोई बीती कहानी होना चाहते हो;
अपने परिवार के पलको से,
बहता दर्द भरा आँसू होना चाहते हो,
चंद प्यालों मे तुम्हे सुकून मिलता है,
बेबसी से तेरा खुद का परिवार,
हर पल जलता झुलसता है,
ध्रुमपान निषेध करने मे कोई चुभन है क्या,
जलते धुए के बिनाखुली हवा में,
सांस लेने मे कोई घुटन है क्या।