धरती के नीचे
धरती के नीचे
बहुत शोर था धरती के नीचे भी,
सब जड़े आपस में मिलती थी।
ऊपर से जब काटते थे पेड़ नीचे जड़े सिसकती थी।
जड़ों ने अपना जमीन के नीचे था संसार बसाया।
दूर-दूर तक फैल फैल कर एक दूजे का साथ था निभाया।
लकड़हारे ने पेड़ों पर जब था आरा चलाया।
नीचे जड़ों के संसार का था बहुत जी घबराया।
कैसे मिलेंगे अब बरगद और पीपल,टहनियां बहुत ऊंचे हिलाते थे।
कभी-कभी तो हिलमिल दोनों वृक्ष अशोक वृक्ष को भी चिढ़ाते थे।
यह क्या मानव ने आम जामुन को भी तो नहीं छोड़ा।
मूर्ख हो गया मानव क्या उसने अपना भी ख्याल नहीं किया थोड़ा ?
काट काट कर सारे वृक्ष यह खाना कहां से खाएंगे ?
पीपल की जड़ बोली,
वट दादा खाने की छोड़ो, यह ऑक्सीजन कहां से पाएंगे ?
आज का मानव
बहुत विकसित और शिक्षित है ऐसा लोग कहते थे।
लेकिन हम तो इनके पूर्वजों के राज में ही सुरक्षित थे।
भूमि के नीचे ही बैठक करी थी सारी जड़ों ने,
फिर से जड़ों ने अपनी उर्जा लगाई
और किसी तरह से उन कटे हुए ठूंठों में भी छोटी-छोटी सी कोपलें उग आईं।
वह बेचारी जड़ें क्या जाने मानव ने क्या सोचा है ?
और कुछ दिनों में बनाएंगे पुल,
खोद लेंगे वे सारी जड़े भी,
क्रूर मानव ने पेड़ों के फूल पत्तों तक को भी तो नोंचा है।
