: धोखेबाज़ी
: धोखेबाज़ी
किस-किस के किस्से झरोखे से दिखलाएँ!
दर्द दर्पण में कैसे उजागर कर बतलाएँ!
एक रोज़ धोखे के साथ सामना हुआ।
चकनाचूर हो कर विश्वास फर्श पे था बिखरा हुआ।
जहाँ से सोच भी न उपजी थी वहाँ से छुरा था घोंपा हुआ।
रंज़िशें कब साजिशों में तब्दील हुईं औ तबस्सुम था मुरझाया हुआ।
चकाचौंध में भी धुँधली हो गईं थीं आँखें व दामन था खाली हुआ।
तोड़ दी थी अटूट भरोसे की नींव औ तड़पता छोड़ वो बागी हुआ।
बड़ी विडंबना भरी है ये कहानी व पयाम में कागज़ था कोरा हुआ।
ऐ दोस्त! मुसाफिर सा अकेला क्यों भटकाया मुझे,
मैं तो तेरा नाम लेकर ही थी ज़िंदा!
क्यों दगा दे बीच सफर में मुँह मोड़ वो बेवफा हुआ?