मंज़िल को पाना है
मंज़िल को पाना है
रोज सोने से पहले मंज़िल को देखता हूँ
रोज सवेरे उठकर अपनी मंज़िल को देखता हूँ
और उसकी चाह में उठता हूँ
मंज़िल है दूर उस मंज़िल को पाने के लिए लोग है भरपूर
कॉम्पिटिशन है ज़बरदस्त
मंज़िल को पाना है भीड़ को तोड़ना है
जम कर मेहनत करनी है दौड़ लगाना है
कभी हूँ आगे तो कभी हूँ पीछे
आगे निकलना आसान नहीं है
नए तरीके नए राह चुनना है
दौड़ में सबसे आगे निकलना है
शतरंज की है यह बाज़ी में एक मोहरा हूँ
आगे है तेज़ खिलाड़ी
उनकी बाज़ी को समझ उनको चेकमेट देना है
यह दौड़ है अजीब खतम ही नहीं होती
रोज हारता हूँ मायूस होता हूँ
मगर फिर सवेरे उठता हूँ फिर कोशिश करता हूँ
की काश आज बाज़ी पलट सकूँ
और जीत के अपनी मंज़िल को पा सकूँ
ठान लिया है कुछ भी हो जाए मंज़िल को पाना है
मेहनत कर कुछ बन के दिखाना है