जीने की वज़ह लिखती हूँ
जीने की वज़ह लिखती हूँ
ख्वाहिशों के रंग हज़ार लिखती हूँ
अपने जीने की वजहात लिखती हूँ,
ख्वाहिशों के रंग हज़ार लिखती हूँ!
अश्कों की स्याही में कलम डुबोकर,
अपने सारे अधूरे ख्वाब लिखती हूँ!
दिन तो अक्सर गुज़र जाता है यारा,
रातों को बढ़ता हुआ शबाब लिखती हूँ!
पहले डायरी के पन्ने में शेर भरती थी,
अब नज्मों में सारे जज़्बात लिखती हूँ!
तेरी सूरत में कभी मुस्कुराता सूरज,
तो कभी सुन्दर सलोना चाँद देखती हूँ!