धोखा और सुनामी
धोखा और सुनामी


चक्षों के आँसू सूख गए
समुद्र में तूफान रुक गए
पर दर्द गहराइयों में रह गए ।
घन बरस कर रिक्त हो गए
नदियों में आए उफान थम गए
सागरों के तूफान किनारा कर गए
पर मेरे दर्द खूब कोलाहल मचा रहे ।
चाहकर भी नैनों से नीर रिसते नहीं
पर हृदय में तूफान मचा रहे ।
तरु सूखी पत्तियां गिरा गए
कोमल फूल खुशबू बिखेर गए
पर मेरे दर्द सूई-से अब भी चुभ रहे ।
झरने थककर पहाड़ों में सो गए
पर्वत श्वेत चादर लपेट बैठ गए
खग भी अपने निड़ों में दुबक गए
पर मेरे दर्द न सोते न जागते
बस नश्तर-से चुभते ही जाते ।
बेवफाई के दर्द ऐसे ही नहीं जाते
रिश्तो को छलनी कर जाते
विश्वास का खून कर जाते
घरों को बर्बाद कर जाते
एकाएक आया धोखा और
सुनामी दोनों ही नहीं झेले जाते
इसलिए सदियों तक चुभते ही जाते ।