“ धार्मिक असहिष्णुता ”
“ धार्मिक असहिष्णुता ”
क्या लिखूँ क्या सुनाऊँ, सभी की आँखें बन्द हैं !
कानों के परदे हैं कहाँ, सुनने को सब तंग हैं !!
भूल गए हम वो दिन, खुशियाँ साथ मानते थे !
होली, दशहरा, मुहर्रम, ताज़िया संग उठाते थे !!
आपस में था प्रेम सदा, ईदी सब से लेते थे !
पंडित, मौलवी, पादरी, हमें शिक्षा मंत्र देते थे !!
साथ -साथ मिलकर हम, आपस में सब रहते थे !
अपनों के दुख -सुख में, कदम मिलाकर चलते थे !!
अब न रहा प्रेम हमरा, भाईचारा रह ना सका !
घृणा का हुआ पदार्पण, राजनीति रुक ना सका !!
विश्व के पटल पर हम, सब बौने बनते चले गए !
छवि तो धूमिल हो गयी, हम अकेले सबसे हो गए !!
होली, रामनवमी, मुहर्रम, में सिर्फ तनाव बढ़ता है !
सौहार्द का इस पर्व में, मौत का तांडव होता है !!
हम भूल जाते हैं सभी, बन जाते हम अनेक हैं !
शक्तिशाली तभी बनेंगे, जब सदा हम एक हैं !!
