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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

“ धार्मिक असहिष्णुता ”

“ धार्मिक असहिष्णुता ”

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क्या लिखूँ क्या सुनाऊँ, सभी की आँखें बन्द हैं !

कानों के परदे हैं कहाँ, सुनने को सब तंग हैं !!


भूल गए हम वो दिन, खुशियाँ साथ मानते थे !

होली, दशहरा, मुहर्रम, ताज़िया संग उठाते थे !!


आपस में था प्रेम सदा, ईदी सब से लेते थे !

पंडित, मौलवी, पादरी, हमें शिक्षा मंत्र देते थे !!


साथ -साथ मिलकर हम, आपस में सब रहते थे !

अपनों के दुख -सुख में, कदम मिलाकर चलते थे !!


अब न रहा प्रेम हमरा, भाईचारा रह ना सका !

घृणा का हुआ पदार्पण, राजनीति रुक ना सका !!


विश्व के पटल पर हम, सब बौने बनते चले गए !

छवि तो धूमिल हो गयी, हम अकेले सबसे हो गए !!


होली, रामनवमी, मुहर्रम, में सिर्फ तनाव बढ़ता है !

सौहार्द का इस पर्व में, मौत का तांडव होता है !!


हम भूल जाते हैं सभी, बन जाते हम अनेक हैं !

शक्तिशाली तभी बनेंगे, जब सदा हम एक हैं !!



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