“फेसबुक के बगीचे”
“फेसबुक के बगीचे”


रेत की दीवारों से
घर को बनाना भला क्यों चाहते हो ?
कहीं हवा के झोंके से भरभरा कर नीचे गिर ना जाए !
फेसबुक की भी दीवारें कहीं लड़खड़ा तो नहीं रही है ?
बना लेने को तो हम बना लेते हैं
एक विशाल महल ,
ऊंची -ऊंची मीनारें,
आँगन , बगीचे ,
स्वीमिंग पूल
और रंगों से भर देते हैं फेसबुक !
जितने कम समय में हो
एक भव्य अट्टालिका बन जाती है ,
नये दोस्तों की लम्बी सूची जुड़ने लगती है !
पर उसी रफ्तार से
क्रमशः धराशाही होने लगती है !!
हम भूल करते हैं और बेवजह
मित्रता को बढ़ाना चाहते हैं!
गुणवत्ता को बिन जाने- पहचाने
कोई महल का निर्माण भला होगा कैसे ?
आखिर वे तो रेत के टील्हे पर टिकी है !
मित्रता का महल ठोस नींव,
दीवारोंऔर मजबूत छतों से बनता है ,
उसको बनाने के लिए
आपसी सहयोग और
समान विचार धारा की ईंटों की जरूरत होती है !!
एक दूसरे को जान पाएँ,
सीमेंटों के तरह आपस में जुट तो जाएँ !
विचारों का आदान -प्रदान के
रंग -रोदन से अपने फेसबुक के घरों को सजाना होगा ,
छोटे -बड़े ,
रंग भेदरहित,
भाषा को सम्मान और
धर्मों का आदर करके
फेसबुक के बागों में
सुगंधित फूलों को उगाना होगा !!