“मुसाफिर”
“मुसाफिर”
अँधेरों से नहीं रुकते ,
जिन्हें मंज़िल को पाना है !
कोई भी साथ ना दे तो ,
अकेले चलते जाना है !!
कठिन हो रास्ता अपना,
लक्ष्यों को भेदना आता !
लगे जो पाँव में ठोकर ,
हमें इसे झेलना आता !!
नहीं मुझे रोक पाएगा ,
ना आँधी से मैं डरता हूँ !
तपीस से हमको क्या लेना,
उसे मैं रोज सहता हूँ !!
सफर में लोग मिलते हैं,
कारवाँ बन निकलता है !
अकेला रहते हैं कुछ पल,
कोई फिर साथ देता है !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
23.12.2025
