देर रात तक जाग रही थी...
देर रात तक जाग रही थी...
उस दिन,
देर रात जागी हुई थी
या यूँ कहो कुछ सोच रही थी,
टटोल रही थी,
खुद में खुद को ढूंढ़ रही थी।
और मेने सोचा
ना जाने केसे होंगे सैंया मेरे
बस् सादगी को मेरे पसंद करें
मे तो हूँ गाँव की गोरी
शहर के बाबू वो ठहरे।
शहर की बातें
बड़े अटपटे
भाई सच्ची, मेरे तो कुछ समझ में ना आते।
शादी के कुछ दिन ही हूए,
उस दीन जब ये घर वापस आये
नशे में धुत्त,
वो बोले अरे नहीं
मतलब, ये तो फैशन है,
और थोड़ा तो चलता है।
पर मे रोई, बहुत रोई,
वो जी जान से मुझे मनाएं।
मनाएं? यूँ कहो बडे धोए,
गोरे गोरे बदन मेरे सारे सूज गये।
फिर दे मारे दो थप्पड़ जडके,
आँख दिखा कर कुछ ऐसे भड़के...
समझ में नहीं आती एक बार समझाने में।
हाँ समझ गयी में।
फीर उस दिन देर रात जाग रही थी,
या मानो किसी गहरी सोच में थी।
सोचा पति को मेरी जो इतनी प्यारी,
क्या हो अगर में भी ले लूं उसमें से थोड़ी।
अक्सर वो साकी को देखते और बड़े प्यार से उसे चुमते रहते,
शायद इसी बहाने मुझे भी देख लेंगे आँख भर के।
इतनी हीं कसर बाकी थी
अब तो सिर्फ उनमें शरीक होना बाकी था।
ये अच्छा है
अब तक वो किए तो सब गये खाली,
पर अब हमें चरित्रहीन की गाली।
और इतना ही नहीं, भरे बाजार में हमें नीलाम कर गये
हमें छोड़ गये।
हाँ मैं फिर देर रात तक जागी, पर आज में कुछ सोच नहीं रही,
ना कुछ पूछ नहीं रही,
अब तो ये रात बड़ी लम्बी होने वाली है,
हाँ क्योंकि अब शायद हम सोने वाले हैं।