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Paramita Mishra

Drama

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Paramita Mishra

Drama

भगतसिंह

भगतसिंह

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मेरे भारत देश के वासियों

आओ सुनते एक कहानी सच्ची,

खुद मिट गये जो

खुद कट गये

और ऐसी कहानी रच दी।


आज जो हम विश्व में

सिर उठाकर हैं खडे,

तुम एहसान मानो उन वीरों का

स्वराज के लिए जो थे लड़े।


बिस्मिल की दो शब्द

उन वीर जवानों के नाम-


"सरफरोशी की तमन्ना

अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना

बाज़ू - ए - कातिल में है।"


कोई नाम के मोहताज नहीं वो,

इन पंक्ति के जो बोल हैं,

कोई गैर ही होगा

जो ना जानता

वो वीर जवान कौन थे !


वो भगतसिंह,

कोई और नहीं,

वो भारत माँ का लाडला।


जो रंग गया

अपने खून से

अपने ही बसन्त का चोला।


फांंसी के पहले रात को

जब आई थी माँ मिलने उसे

पूछा, "ए माँ ! रोएगी क्या फासी के बाद

बड़ी ज़ोर से ?"


माँ मुस्कुराई और बोली,

"कैसी ये बातें

तू कर रहा है रे पगला,

बेटे की शादी में भी

कोई माँ रोती है भला !"


फिर बोली,

"तू खुशी से जा,

पर बहू को मेरी

इतनी - सी ये बात कहना,

बूढ़ी आखें तरस रही हैं,

आज़ादी ! तू देर - सबेर जल्दी आना।"


23 मार्च का वो दिन आया,

धरती का सीना कांप उठा।

जब हवाएँ भी उस जेल की

रंग दे बसंती बोल उठी।


फांंसी के फंदे को

जब चूम के गले लगाए वो।

सारे भारत में इंकलाब का

घमासान मच गया शोर।


अपने बल पे लिख गया

वो इतिहास भारत के सीने पे,

जब नाम आये राष्ट्र भक्तों का,

ए भगतसिंह तू रहे सबसे आगे,

तू रहे सबसे आगे...!


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