भगतसिंह
भगतसिंह
भमेरे भारत देश के वासियों,
आओ सुनते एक कहानी सच्ची,
खुद मीट गये जो खुद कट गये,
और ऐसी कहानी दि रचि।
आज जो हम बिस्व में,
सिर उठाकर हैं खडे,
तुम एहसान मानो उन वीरों का,
स्वराज के लिए जो थे लड़े।
सरफरोशी की तमन्ना,
अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना,
बाजुए कातिल में है।
कोई नाम की मोहताज वो नहीं,
इन पंक्ति के जो बोल हैं,
कोई गैर ही होगा जो ना जानता,
वो वीर जवान कौन थे !
वो भगतसिंह, कोइ और नहीं,
वो भारत माँ का लाडला,
जो रंग गया अपनी खुन से,
अपने ही बसन्त का चोला।
फासी के पेहले रात को जब,
आइथी माँ मिलने उसे
पुछा ए माँ रोएगी क्या,
फासी के बाद बडी जोर से।
माँ मुस्कुराइ और बोली
कैसी ये बातें कर रहा है रे पगला,
बेटे के सादी में भी,
कोइ माँ रोती है भला।
फीर बोली तु खुसी से जा,
पर बहू को मेरे इतना सा ये बात कहना,
बूढी आखें तरस रहे हैं,
आजादी तू देर सबेर जल्दी आना।
23 मार्च की वो दिन आयी,
धरती का सीना कांप उठा,
जब हवाएँ भी उस जेल का,
रंग दे बसंती बोल उठा।
फासी के फंदे को जब,
चुम के गले लगाए वो,
सारे भारत में इनकिलाब का,
घमासान मचगया सोर।
अपनी बल पे लिख गया वो,
इतिहास भारत के सीने पे,
जब नाम आये राष्ट्र भक्तों का,
ए भगतसिंह तु रहे सबसे आगे,
तु रहे सबसे आगे।