डीयर जिंदगी
डीयर जिंदगी
मैं बहता सागर के मोहपाश में,
हो तुम उसकी मझधार प्रिये।
घनघोर घटा के मेघों से
तुम गिरती बिजली की धार प्रिये।
रिश्तों की डूबती नैया पर
तुम आशाओं की पतवार प्रिये।
महंगाई के इस आलम में
तुम प्याज का बढता दाम प्रिये।
बढते बालों सी इच्छाओं पर
तुम नारियल तेल की धार प्रिये।
खर्चों से बढते ख्वाबो पर,
तुम महंगाई की मार प्रिये।
हर टिफ़िन बॉक्स के डिब्बे में
तुम काजू कतली की आस प्रिये।
खुले आसमान में विचरण करती,
तुम सपनो की उड़ान बूढे माँ-बाप की आंखों में,
तुम ना बुझने वाली आस प्रिये।
पती-पत्नी के रिश्ते में,
तुम घुलने वाली मिठास प्रिये।
इस कलयुगी शीत लहरी में,
तुम आस्था की आग प्रिये।
इस कलयुगी समुंदर के मंथन में,
तुम नीलकंठ का अवतार प्रिये।

