नहीं सजती क्यों महफ़िल यारों की जब घर ही पे तो है रहना होता नहीं सजती क्यों महफ़िल यारों की जब घर ही पे तो है रहना होता
"रोंद डाला मानवता को उनके लोभ ने या गुम हो गई कहीं ' कलयुगी ' शोर में ?" "रोंद डाला मानवता को उनके लोभ ने या गुम हो गई कहीं ' कलयुगी ' शोर में ?"
मैं बहता सागर के मोहपाश में, हो तुम उसकी मझधार प्रिये। घनघोर घटा के मेघों से तुम गिरती बिजली की... मैं बहता सागर के मोहपाश में, हो तुम उसकी मझधार प्रिये। घनघोर घटा के मेघों से...
प्रभु तेरे कलयुग की लीला अद्भूत अगण निराली है! प्रभु तेरे कलयुग की लीला अद्भूत अगण निराली है!