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Brijlala Rohan

Tragedy

4.5  

Brijlala Rohan

Tragedy

ढूंढ रहा तन -मन तुम्हें

ढूंढ रहा तन -मन तुम्हें

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ढूंढ रहा तन मन तुम्हें, पुकार रही वतन तुम्हें ,             

तेरे आने की उम्मीद में ,पलक-पाँवडे बिछाये हुए हैं नयन ।     

ढूंढ रहा तन मन , ढूंढ रहा तन मन तुम्हें, ढूंढ रहा -----

        

ढूंढ रही वो राखी तुम्हें, तेरी कलाई कहीं दिख नहीं रही        

बहना की प्यार की दूरबीन तुम्हें खोज रही।             

ढूंढ रहा वो आँचल तुम्हें, जिसकी छाँव में बीता था बचपन      

ढूंढ रहा तन- मन --------      

                    

ढूंढ रही प्रेयसी की सिंदूर तुम्हें,  

नित बाट निहारती रह तुम्हारी एकटक लगाये बैठे उसके नयन।                     

न, जाने कब आयेगा उसका प्रियतम ,ढूंढ रहा तन मन ----      


पुछ रहा है पिता तुम्हें, जिसने हँसकर विदा किया था,

मातृभूमि की सेवा में, सर पर बाँधे कफ़न।                   

यार तेरा हाल कैसा है ? कुशल- मंगल की कामना करते हुए याद कर रहें हैं ,तेरे मित्रगण ।                     

ढूंढ रहा तन मन, पुकार रही वतन तुम्हें।

रे! ढूंढ रहा तन मन------


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