ढलती शाम...
ढलती शाम...
यादों का तुम्हारे शाम संग आना,
मुझमें समा के बस मेरा हो जाना।
दिन भर की तमाम उलझने सुलझाती है,
हताश मन को मेरे संबल दे जाती है।
समेट कर इन ताकतों को,
एक नई सी कोशिश फिर से कर जाता हूं।
हर मुश्किलों से लड़कर,
निखर जाता हूं।।
हवाओं में बहती वो खुशबू तुम्हारी,
करती है मुझसे बातें बहुत सारी।
कई रातों से नींदो की आहट नहीं है,
पलकों को झपकने की मानो कोई चाहत नहीं है।
सुबह फिर से दिनकर लिखता है,
एक नया सा अफसाना।
यादों का तुम्हारे शाम संग आना......

