हैं कितने दर्द....
हैं कितने दर्द....
हैं कितने दर्द जिंदगी में,
किस-किस को बताऊँ।
कितने अश्रु छिपे हैं इन आँखों में,
किस-किस को दिखाऊं।
बनकर हमदर्द कितनों ने दर्द दिया है,
अब सीने पर लगे इस चोंट को,
आखिर किस-किस को दिखाऊं।
हैं कितने दर्द जिंदगी में...
रोतें हैं अक्सर रातों में,और
चुपके से उस चाँद को निहारता हूँ।
बाँहें फैलाकर दुवाओं में बस,
सुकूँ ही मांगता हूं।
फिर भी अब तलक ये प्यास अधूरी है,
इस बात को जानता हूं।
हैं कितने दर्द जिंदगी में...
