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YOGESH KUMAR SAHU

Abstract

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YOGESH KUMAR SAHU

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अपने शहर में हूं मैं..

अपने शहर में हूं मैं..

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क्यों तलाशते हो मुझे,अंजान नगरों में

अभी तक अपने शहर में हूं।

हर पहर, हर लहर में, सुबह शाम, दोपहर में हूं।

क्यों तलाशते हो मुझे....


  छोड़ा तो तुमने था सबकुछ,

  मैं तो आज भी सबकुछ संभाले बैठा हूं।

  बदल गए तुम वक्त के साथ-साथ,

  गौर से देखो मैं वैसा का वैसा हूं।

  शिकायत करूं भी तो क्या करूं

  अजनबी तो अब मैं तेरे नजर में हूं।

  क्यों तलाशते हो मुझे.....


हर दुआ में तेरी खैर ही तो मांगी थी मैंने,

कई दफे बस तेरे लिए हर सीमा लांघी थी मैंने

फिर कह कैसे दिया तुमने किसी और से, कि

दर्द देने वाला कोई कहर सा हूं मैं।

क्यों तलाशते हो मुझे.....


हो जाने के बाद भी इतना सबकुछ,

विश्वास में ही जीता हूं मैं,

मिलते है आज भी विष से भरे प्याले,

जानते हुए सच फिर भी इन्हें पीता हूं मैं।

अब जहर पी पीकर,खुद एक जहर सा हूं मैं..

क्यों तलाशते हो मुझे,अंजान नगरों में

अभी तक अपने शहर में हूं मैं।


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