यही अंतिम सजा है.....
यही अंतिम सजा है.....
बेखौफ जी रहे हैं,
हैवान आज कल तो।
खो गई है इंसानियत,
ये जख्म सब नया है।
कहां छिपे है किस्से,
वक्त चीखता है।
मौन मुख भले है,
पर नैन से बयां है।।
बेखौफ जी रहे है,
हैवान आज कल तो....
अच्छाई बनी बेचारी,
बुराई सिर उठाती।
जला के डर की अग्नि,
बेचैनी है बढ़ाती।
कानून भी विवश सा,
कैसे यहां खड़ा है।
जैसे वजूद से अपने,
वो खुद ही खुद लड़ा है।
आतंक सा मचा है,
दिखता नही अब हल तो,
बेखौफ जी रहे है,
हैवान आज कल तो...
क्यों गिड़गिड़ा रही है,
इंसानियत यहां पर।
और पंख है पसारे,
दरिंदगी इस जहां पर।
सिर उठा रहें है,
अपराध के सपोले।
कैसे इन्हे अब कुचले,
पैरों में है फफोले।
दमन हो कैसे इनका,
अब ढूंढते है हल तो।
बेखौफ जी रहे हैं,
हैवान आज कल तो....
बस बहुत हुआ अब,
देखो बिगुल बजा है।
संहार करने इनका,
अर्जुन खुद सजा है।
कृष्ण का इशारा,
बस वक्त मांगता है।
मौत होगी दुष्टों की,
बस यही अंतिम सजा है।
बस यही अंतिम सजा है।