दानवता त्याग अभी
दानवता त्याग अभी
गीत
असमंजस में उलझा मानव
मंजिल से निज भटक रहा ।
मानवता की देखो हालत
पत्थर भी है चटक रहा ।।
मानव है मानव जैसी
तुम बात सभी ही करना
दानवता त्याग अभी तू
मानव राग सही भरना
संवेदना पहचान अपनी
बातों में क्यों अटक रहा
असमंजस में उलझा मानव
मंजिल से निज भटक रहा ।
मानवता की देखो हालत
पत्थर भी है चटक रहा ।।
भाई बने शत्रु अब हैं
लोभ हृदय के बीच भरा
रिश्ते नाते झूठ लगे
मिलते कहाँ अपने खरा
जब सब छूटे संगी साथी
मानव क्यों सर पटक रहा
असमंजस में उलझा मानव
मंजिल से निज भटक रहा ।
मानवता की देखो हालत
पत्थर भी है चटक रहा ।।
