चुप हो गये वो राह में.....
चुप हो गये वो राह में.....
चुप हो गये वो राह में ही यों चलते चलते,
घुट रही हूँ मैं बस अब अन्दर ही अन्दर,
थक गई हूँ खामोशी की वजह ढूँढते ढूँढते,
कभी तो शान्त करते अन्दर का ये समन्दर।
बहुत जान लिया तुम्हें अब, बहुत समझ लिया,
फिर भी छौर न मिला तेरा कहीं से भी कोई,
अभी भी अन्जान हूँ, अपना चाहे बना लिया,
राह तकते तकते हार गई, बस नज़रें भिगोईं।
दिल की ये अशान्ति और उन की वो खामोशी,
पता नहीं कब तक साथ चुप-चाप निभायेगी,
हर बार मेरी नज़रें खुद को ही पा रही दोषी,
पता नहीं कब तक आँखें मेरी सज़ा ये पायेंगी।
चलते चलते ज़िन्दगी का कैसा ये मोड़ आया,
जीते जी जो ज़िन्दगी को मौत बस बना गया,
कितने ही पहरे रूह पर हम ने हर बार लगाये,
मग़र फिर भी तेरी रूह को वो उड़ा कर ले गया।
चुप हो गये वो राह में ही यों चलते चलते,
घुट रही हूँ मैं यों बस अब अन्दर ही अन्दर,
थक गई हूँ खामोशी की वजह ढूँढते ढूँढते,
कभी तो शान्त करते अन्दर का ये समन्दर।
