चुनाव से असली मुद्दे गायब
चुनाव से असली मुद्दे गायब
सहानुभूति उपजाय के,
नेता जीतना चाहें चुनाव।
कोई खुद को अछूत कहे,
कोई दे रहा दशानन को भाव।
कोई दे रहा दशानन को भाव,
चुनाव से असली मुद्दे गायब।
वादों के पुल से जाना चाहें पार,
चुनाव की नदी को बन नायब।
ताव ला रहे जनता के मन,
खोल भावना की 'हरी' किताब।
बहुरुपिए व्यापारी ऐ वोट के,
भावना में बह न देखना ख्वाब।।
जब पूरा करने की आये बारी,
तब चुनावी जुमला कह देंगे।
तुम ठगे ठगे रह जाओगे,
बन माननीय यह मजे लेंगे।
बन माननीय यह मजे लेंगे,
तुम तड़पोगे मंहगाई से ।
तुम रोजगार की बात करोगे,
बात होगी पुलिस पिटाई से।
करोगे धरना प्रदर्शन तुम,
पीड़ित होगे घर गिराई से।
सोच समझ मत अपना देना,
मत पाते हट जायेंगे काई से।।