चंद्रयान
चंद्रयान
वो चाँद, जो अब तक था, सिर्फ किताबों में,
घटता-बढ़ता रहता था, महीनों के हिसाबों में।
बुढ़िया काटती थी चरखा, किस्से-कहानियों में,
और मिलता था वो, शायरों की रूबाइयों में।
चकोर को जलाता था, बादल में छुप जाता था,
देखा जाता था कभी ईद में, तो कभी दूज में।
ये बातें तब की हैं, जब भारत थोड़ा रुक गया था,
चंद्रवंशियों का सूर्य, तारों के झंडे से ढ़क गया था।
पुनः भारतीय मष्तिष्क, उन्मुक्त और चाँद पर है,
चंद्रयान तिरंगें के संग, चाँद के दक्षिण आधार पर है।
कभी दूध के कटोरे में, कभी छन्नी से देखा जाता है,
आज वो चाँद दिख रहा है, हम सबके अभिमानों में।
शून्य और अनंत दोनों, भारत ही ने तो समझाया था,
चंद्रकला और नक्षत्रों को, सबसे पहले बतलाया था।
अब उस छोर पर पहुँचा है, जहाँ रवि भी कम जाता है,
भारत माँ के बेटों को, सब मुमकिन करना आता है।
वो दक्षिण, जिसे पश्चिम वाले, बुनते रह गए ख़्यालों में,
चंद्रयान भेज, उसे हक़ीक़त, किया भारत माँ के लालों ने।